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प्रोटेम स्पीकर से लेकर शपथ ग्रहण तक, विधानसभा की बारीकियां समझिए

दिल्ली में नई विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है। 24 फरवरी को सुबह 11 बजे नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ ग्रहण होगा। विधानसभा में शपथ ग्रहण की बारिकियां क्या होंगी, आइए समझते हैं।

Delhi Assembly

दिल्ली विधानसभा। (Credit: PTI)

दिल्ली में नई विधानसभा के पहले सत्र का आयोजन होने वाला है। 8वीं विधानसभा के नवनिर्वाचित विधायक शपथ ग्रहण करेंगे। 11 बजे नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ ग्रहण होगा। सोमवार को ही विधानसभा स्पीकर का चुनाव होगा। विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर अरविंदर सिंह लवली बनाए गए हैं। 

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उन्हें दिल्ली विधानसभा का प्रोटेम स्पीकर निुयक्त किया है। वही नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाएंगे।  24 फरवरी से 27 फरवरी तक चलने वाले इस विधानसभा सत्र की शुरुआत से पहले समझिए, कौन किसे शपथ दिलाता है, प्रोटेम स्पीकर कौन होते हैं, कैसे विधानसभा स्पीकर का चुनाव होता है।

शपथ ग्रहण क्यों होता है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 188 में शपथ ग्रहण के प्रावधान है। यह अनुच्छेद कहता है, 'किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।'

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आसान भाषा में इसे ऐसे समझिए कि चुनाव के बाद हर विधायक के लिए विधान सभा के सदस्य के रूप में विधान सभा की कार्यवाहियों में भाग लेने से पहले संविधान के अनुच्छेद-188 के अन्तर्गत शपथ लेना अनिवार्य होता है। 

कौन किसे दिलाता है शपथ?
- प्रोटेम स्पीकर को राज्यपाल/उपराज्यपाल शपथ दिलाते हैं।
- प्रोटेम स्पीकर नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाते हैं।
- प्रोटेम स्पीकर स्पीकर का चुनाव कराते हैं

विधानसभा अध्यक्ष को शपथ लेने की आवश्यकता नहीं होती है। वह विधायक के तौर पर ही पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

प्रोटेम स्पीकर का चयन क्यों होता है?
प्रोटेम स्पीकर का चयन अस्थाई रूप से संसद के संचालन के लिए किया जाता है। नए लोकसभा या विधानसभा के गठन के बाद प्रोटेम स्पीकर चुने जाते हैं। उनका काम नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाना और स्थायी स्पीकर के चुनाव की प्रक्रिया को संपन्न कराना होता है।

प्रोटेम स्पीकर पर कानून संविधान के अनुच्छेद 180(1) के तहत निर्धारित किया गया है। संविधान का अनुच्छेद 180(1) के कहता है, 'जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो तो कार्यालय के कर्तव्यों का पालन विधानसभा के ऐसे सदस्य द्वारा किया जाना चाहिए जिसे राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करें।' स्थाई नियुक्ति होते ही प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। चुनाव कराने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है। वह नए विधानसभा स्पीकर को आसन तक लेकर जाते हैं। 

कैसे स्पीकर का चुनाव होता है?
विधानसभा चुनाव के बाद राज्यपाल विधानसभा का पहला सत्र बुलाते हैं। प्रोटेम स्पीकर प्रोटेम स्पीकर नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाते हैं। स्पीकर के चुनाव की प्रक्रिया प्रोटेम स्पीकर पूरी कराते हैं। स्पीकर पद के लिए उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दाखिल करना पड़ता है। आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का उम्मीदवार निर्विरोध चुना लिया जाता है। अगर विपक्ष उम्मीदवार उतारता है तो चुनाव होता है। सभी विधायक पक्ष-विपक्ष में मतदान करते हैं। चुनाव के बाद, दिल्ली के उपराज्यपाल स्पीकर की नियुक्ति की औपचारिक स्वीकृति देते हैं। इसके बाद, नया स्पीकर कार्यभार संभाल लेता है।

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विधानसभा स्पीकर का क्या काम होता है?
विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार सर्वोच्च होते हैं। वह विधानसभा सचिवालय और विधानसभा दोनों के प्रमुख होते हैं। सदन कैसे चलेगा, सदस्य कैसे नियमों का पालन करेंगे, कौन सा विधेयक चर्चा के लिए लाया जाएगा, सदन के पटल पर चर्चा कैसे होगी, यह सब विधानसभा अध्यक्ष ही तय करते हैं। वे विधानसभा की कार्यवाही के दौरान व्यवस्थाएं तय करते हैं, निर्णय देते हैं, जिसे नजीर माना जाता है।

अगर विधानसभा अध्यक्ष न हों तो उनकी गैरमौजूदगी में विधानसभा के उपाध्यक्ष सभा की अध्यक्षता करते हैं। कुछ पीठासीन सदस्य भी विधानसभा अध्यक्ष चुन सकते हैं। 

विधानसभा सत्र से जुड़े नियम क्या हैं?
संविधान का अनुच्छेद 153 कहता है, 'राज्य विधानमंडल के सदन या सदनों को प्रत्येक वर्ष कम से कम दो बार बैठक के लिए बुलाया जाएगा, और एक सत्र में उनकी अंतिम बैठक और अगले सत्र में उनकी पहली बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा।' आसान भाषा में विधानसभा सत्र को बुलाने का अधिकार राज्यपाल के पास होता है। सत्र की अंतिम बैठक और अगले त्र की पहली बैठक के बीच 6 महीने से ज्यादा अतंर नहीं होना चाहिए। 

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विधानसभा गठन के बाद क्या होता है?
विधान सभा के गठन बाद पहले सत्र की शुरुआत में और हर कैलेण्डर ईयर के पहले सत्र में राज्यपाल सभा में अभिभाषण देते हैं। दिल्ली के संदर्भ में यह जिम्मेदारी उपराज्यपाल की होती है। उपाराज्यपाल के सदन में पहुंचने की सूचना सदस्यों को दी जाती है। उपराज्यपाल को आसन तक लाया जाता है। उनके आसान ग्रहण करने के बाद राष्ट्रगान की धुन बनाई जाती है। राज्यपाल का अभिभाषण होता है। विधानसभा के तीन सत्र होते हैं। बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र। दिल्ली में चुनावों के बाद नई विधानसभा का यह पहला सत्र है।

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