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म्यांमार से FMR, नॉर्थ ईस्ट की चुनौती और तकरार की वजहें, पूरी कहानी

भारत और म्यांमार 1643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। दोनों देशो की समृद्ध साझा सांस्कृतिक विरासत रही है। अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम की जनजातियों की जड़ें म्यांमार से जुड़ी हुई हैं। पढ़ें रिपोर्ट।

India Myanmar Border

भारत-म्यांमार सीमा। (Photo Credit: PTI)

म्यांमार के साथ फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) को खत्म करने और सीमा पर बाड़बंदी को लेकर पूर्वोत्तर के राज्य असमंजस की स्थिति में हैं। सांस्कृतिक और जातीय एकता है तो दूसरी तरफ अवैध घुसपैठ, ड्रग और हथियारों की तस्करी का खतरा भी है। पूर्वोत्तर के कई मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि अब हालात एक जैसे नहीं हैं, अगर FMR लागू रहेगा तो घुसपैठ की और तस्करी की आशंकाएं बनी रहेंगी। मिजोरम और नगालैंड जैसे राज्यों का तर्क है कि FMR खत्म नहीं होना चाहिए क्योंकि इसकी वजह से आक्रोश पैदा होगा। दोनों राज्यों का कहना है कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक एकता के हितों का सवाल है, FMR खत्म होने से दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब होंगे, दूरियां बढ़ेंगी और लोग अपनों से छूट जाएंगे।

8 फरवरी 2024 को गृह मंत्रालय की ओर से एक प्रेस रिलीज शेयर की जाती है। अधिसूचना में लिखा होता है, 'गृहमंत्रालय ने देश की आंतरिक सुरक्षा को कायम रखने और म्यांमार सीमा से लगे भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में डेमेग्राफिक संरचना को कायम रखने के मकसद से, म्यांमार के साथ फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) खत्म करने का फैसला किया है। गृहमंत्री अमित शाह ने इसी दिन बयान दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मकसद देश की सीमाओं को सुरक्षित करना है। जब तक विदेश मंत्रालय FMR खत्म करने की प्रक्रिया पूरी कर रहा है, गृह मंत्रालय  ने इसे तत्काल निलंबित करने की सिफारिश की है। दिसंबर 2024 तक प्रकियाएं शुरू भी हो गई थीं। क्या ऐसा जमीन पर हो पाया है? आइए जवाब तलाशते हैं।

मणिपुर का FMR पर रुख क्या है?

13 फरवरी 2025। मणिपुर के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने लिखा, '2022 याद करते हैं। म्यांमार का एक शख्स फर्जी आधार कार्ड के साथ पकड़ा गया। तब से लेकर अब तक कितने पकड़े नहीं जा सके हैं।  मेरे साथियों, हमारी जमीन और पहचान संकट में है। कम आबादी और कम संसाधनों के साथ हम क्षणभंगुर स्थिति में हैं। मैंने 2 मई 2023 के बाद से ही अवैध घुसपैठ की निगरानी की। हमारी मशीनरी इसे रोकने के लिए संघर्ष कर रही है। म्यांमार के साथ 398 किलोमीटर बॉर्डर और फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) की वजह से मणिपुर की आबादी संतुलन बिगड़ रहा है। यह अनुमान नहीं है, यह हमारी आंखों के सामने हो रहा है। जब हमारी सरकार ने मार्च 2017 में सरकार संभाली, चुनौती और बढ़ गई है। 3 मई 2023 के बाद हालात और भी बुरे हो गए।'

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नगालैंड का रुख क्या है?
नगालैंड के CM नेफ्यू रियो ने 6 मार्च 2025 को फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) और प्रोटेक्टेड एरिया रिजीम (PAR) पर केंद्र के खिलाफ विधानसभा सभा में प्रस्ताव पारित कराया। नागालैंड म्यांमार के साथ FMR चाहता है। नागालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें केंद्र से भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ नहीं लगाने की बात कही गई है। ज्यादातर लोगों की चिंता है कि इस कदम से सीमा के दोनों ओर रहने वाले नागा समुदायों के बीच सदियों पुराने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध बाधित होंगे।

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मिजोरम का रुख क्या है?
मिजोरम के सीएम ने 10 मार्च 2025 को कहा, 'हमें म्यांमार के अपने भाइयों का ख्याल रखना चाहिए, जिन्होंने 2021 में मिलिट्री शासन के बाद मिजोरम से शरण मांगी है, हमें मानवीय मदद भी करनी चाहिए लेकिन उनमें से कई अब वापस लौटना नहीं चाह रहे हैं। भले ही उनका गांव सीमा से साफ झलक रहा है। मेरा मानना है कि अब भारत और म्यांमार के बीच फ्री मूवमेंट सुरक्षित नहीं है।'



अरुणाचल प्रदेश का रुख क्या है?
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 8 फरवरी 2024 को लिखा, 'प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को सीमाओं की सुरक्षा के लिए शुक्रिया। भारत-म्यांमार के बीच FMR को रद्द करने का फैसला, हमारी आंतरिक सुरक्षा और पूर्वोत्तर राज्यों की आबादी की अखंडता के लिए अहम है। यह ऐतिहासिक फैसला अवैध प्रवास की मुश्किलें कम करने की दिशा में अहम कदम है।'






एक-दूसरे पर कितने निर्भर हैं भारत-म्यांमार?

- भारत म्यांमार को दवाइयां, मशीनरी, गाड़ियां, कपड़े और खाद्य पदार्थ निर्यात करता है।
- म्यांमार से भारत दाल, लकड़ी, मिनिरल्स, मछलियां , समुद्री फूड, फर्नीचर के उत्पाद खरीदता है। 
- दोनों देशों के बीच व्यापार 17,596 करोड़ रुपये से ज्यादा का व्यापार हर साल होता है। 

भारत और म्यांमार के बीच FMR को कायम रखने के तर्क क्या हैं?
दीवान लॉ कॉलेज में इंटरनेशनल स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल गुप्ता बताते हैं, 'जनजातीय तौर पर म्यांमार और पूर्वोत्तर के राज्यों में समानता है। नागा, कुकी, मैतेई और मिजो जैसे समुदायों दोनों देशों में बसे हैं। दोनों देश ऐतिहासिक, जातीय और पारंपरिक तौर पर भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। FMR के जरिए ये समुदाय अपने विस्तारित कुनबे से मिल पाते हैं, परंपराओं को कायम रख पाने में कामयाब होते हैं।'

असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल गुप्ता ने कहा, 'म्यांमार और भारत भौगोलिक रूप से अलग, सांस्कृतिक रूप से एक हैं। वहां आदिवासी जनजातियां हैं, बौद्ध हैं। FMR सीमा के भीतर 16 किलोमीटर के दायरे में बिना वीजा आने-जाने और स्थानीय व्यापार करने की इजाजत देता है। सांस्कृतिक तौर पर दोनों क्षेत्रों की एक-दूसरे पर निर्भरता रही है। जनजातीय समुदायों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि एक परिवार बर्मा में बसा है, दूसरा भारत में। ऐसे में यही लोग, म्यांमार के साथ FMR की मांग करते हैं, जिससे लोग अपनों से मिल-जुल सकें।' 

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निखिल गुप्ता ने कहा, 'बर्मा राष्ट्रवादी आंदलोन के उदय और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के ब्रिटिश भारत पर लागू होने के बाद दोनों देश अलग-अलग देशों के तौर पर सामने आने लगे। भारत के लोग रंगून कमाने जाते थे। वहां से लोग भारत में कमाने आते थे। भारतीय समुदाय वहां रच-बस गए थे। 1 अप्रैल 1937 को बर्मा ऐतिहासिक रूप से भारत से अलग हो गया था। ब्रिटिश सरका का उपनिवेश बना रहा। 4 जनवरी 1948 को बर्मा संघ के नाम से एक स्वतंत्र गणराज्य भी घोषित हो गया।'


निखिल गुप्ता ने भारत और म्यांमार के संबंधों पर कहा, 'भारत और नेपाल के बीच जैसे संबंध हैं, ठीक वैसे ही संबंध म्यांमार और पूर्वोत्तर का है। रोटी-बेटी के संबंध वहां से रहे हैं। कुछ दशक पहले तक के सामान्य संबंध, अचानक से कूटनीतिक औपचारिकताओं में बदल जाएं तो लोग विरोध करते हैं। घुसपैठ एक बड़ी समस्या है लेकिन सांस्कृतिक-पारंपरिक रूप से एक जैसे माहौल वाले देशों में कड़ी निगरानी के साथ FMR को इजाजत दिया जा सकता है। म्यांमार से वैसे भी पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह तल्ख संबंध नहीं हैं, ऐसे में इतना किया जा सकता है।'

FMR क्यों नहीं होना चाहिए?
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्याल में इंटरनेशनल लॉ पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विकास कुमार ने कहा, 'पूर्वोत्तर के राज्यों के पहाड़ी इलाकों में ड्रग अब एक उद्योग बन गया है। वहां बड़ी संख्या में बागी समुदायों के बीच हथियार पहुंच रहे हैं। मणिपुर में 3 मई 2023 के बाद जो कुछ हुआ, उसमें म्यांमार से आए घुसपैठियों की भूमिका से सरकारें इनकार नहीं कर पा रही हैं। वहां से ड्रग्स और हथियार दोनों बड़ी संख्या में आ रहे हैं। पूर्वोत्तर से उग्रवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। अगर इसे रोका नहीं गया तो जम्मू-कश्मीर जैसे हालात भी हो सकते हैं। जैसे सरकार रोहिंग्या और बांग्लादेशियों की घुसपैठ से परेशान है, ठीक वैसे ही हालात यहां होंगे। पूर्वोत्तर की जनजातीय संरचना को कायम रखने के लिए भी FMR नहीं होना चाहिए। FMR का समर्थन पहाड़ी इलाकों में बसे नागा और मिजो समुदाय करते हैं लेकिन मैतेई और दूसरी जनजातियों ने हमेशा इसका विरोध किया है।' 

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घुसपैठ रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?
दोनों देशों के बीच 1643 किलोमीटर की लंबी सीमा है। असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल गुप्ता ने कहा कि भारत-म्यांमार सीमाओं पर लोग तारबंदी और बाड़ लगाने की बात करते हैं। इतनी लंबी सीमा पर इस तरह की फेंसिंग करना मुश्किल है। सीमा पर अगर भारत नेपाल की तरह निगरानी कड़ी कर दी जाए, अहम सेंटर्स पर जवान तैनात रहें तो घुसपैठ रुक सकती है। अगर तारबंदी हो भी गई तो कई समुदाय इससे नाराज हो सकते हैं, यह जबरन थोपा गया विभाजन लग सकता है और पहले से ही अलगाववादी आंदोलन की जद में आए पूर्वोत्तर में नई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। FMR हटाने की जगह निगरानी पर जोर देने की ज्यादा जरूरत है। म्यांमार में 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद अस्थिरता बढ़ी है। दोनों देशों के बीच संबंध भी नए सिरे से लिखे जा रहे हैं। 

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