बिहार: 1 सांसद, 4 MLA लेकिन 40 सीट पर दावा, जीतन मांझी की ताकत क्या है
राजनीति
• PATNA 29 Jun 2025, (अपडेटेड 29 Jun 2025, 7:17 AM IST)
बिहार की सियासत में जीतन राम मांझी, कम सीटों के बाद भी सबके प्रासंगिक बने हुए हैं। वजह है कि जिस तबके का वह प्रतिनिधित्व करते हैं, उसका संख्या बल। वह आबादी तो आज भी बदहाल है लेकिन जीतन राम मांझी, खुद मजबूत स्थिति में बने हुए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जीतन राम मांझी। (Photo Credit: PTI)
1 सांसद, 4 विधायक। बिहार में जीनत राम मांझी के सियासी दबदबे के पीछे, यह आंकड़ा बेहद अहम माना जाता है। कमजोर होने के बाद भी वह एनडीए गठंधन के अहम सहयोगी बने हुए हैं। ऐसा नहीं है कि अन्य सियासी दलों की तरह वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) दलों की आधीनता स्वीकार कर बैठे हैं, वह समय-समय पर बताते रहते हैं कि उनके वोट बैंक की ताकत क्या है, उन्हें कितनी सीटें चाहिए, कैसे बीजेपी और जेडीयू ने उन्हें सीट बंटवारे को लेकर धोखा दिया है। खुद जीतन राम मांझी करीब 2 महीने पहले सीट बंटवारे पर चर्चा के दौरान कहा था कि जेडीयू और बीजेपी ने उन्हें सीटों के मामले में धोखा दिया है।
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी का बिहार में दबदबा है। जीतन राम मांझी, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के इकलौते सांसद हैं फिर भी नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं। चिराग पासवान के पास 5 सांसद हैं फिर भी सिर्फ एक मंत्रालय उन्हें मिला, जेडीयू के 12 सांसद हैं फिर भी इस पार्टी को सिर्फ दो मंत्री मिले, ऐसा क्या है कि जीतन राम मांझी इकलौते सांसद होते हुए भी केंद्र में इतने अहम पद पर हैं, यह सवाल हर किसी के मन में है। कारण क्या है, आइए वजह तलाशते हैं।
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कितने रसूखदार हैं जीतन राम मांझी?
एनडीए गठबंधन में आमतौर पर अनबन सार्वजनिक नहीं हो पाती है लेकिन जीतन राम मांझी अपनी नाराजगी जाहिर करने से चूकते नहीं हैं। 2 महीने पहले उन्होंने कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में हिंदुस्तान आवाम मोर्चा 20 सीटों पर जीत हासिल करेगी। पार्टी की तैयारी है कि 30 से 40 से सीटों पर चुनाव लड़ा जाए। एनडीए की बैठक में वह इस मांग को रखने वाले हैं। जाहिर सी बात है कि उन्हें इतनी सीटें न तो जेडीयू ऑफर कर रही है, न ही बीजेपी। फिर भी उन्हें भरोसा है कि एनडीए की बैठक में तय हो जाएगा कि सम्मानजनक सीटें मिलें। वह जेपी नड्डा और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के सामने अपनी बात रख चुके हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में कितनी सीटों पर उतरे थे?
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में HAM को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को सिर्फ एक सीट दी। वह गया से चुनाव लड़े, जीते और केंद्रीय मंत्री बन गए।
जीतन राम मांझी को साथ रखने की मजबूरी क्या है?
जीतन राम मांझी, महादलितों के नेता भी कहे जाते हैं। वह मुसहर समुदाय से आते हैं। यह समुदाय बिहार में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आता है। यह समुदाय महादलित श्रेणी का हिस्सा है, जिसे बिहार सरकार ने दलितों में सबसे अधिक सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित जातियों के लिए बनाया था। बिहार में महादलित श्रेणी में मुसहर, भुइयां, डोम, मेहतर जैसी जातियां शामिल हैं।
बिहार में मुसहर समुदाय की आबादी करीब 3.0872 प्रतिशत है। जीतन राम मांझी के समर्थन में गैर ओबीसी जातियों का भी एक बड़ा हिस्सा है। बिहार में दलित आबादी 19 प्रतिशत से ज्यादा है।
यह समुदाय मगध क्षेत्र जैसे गया, औरंगाबाद, जहानाबाद और कोसी में प्रभावशाली है। गया जिले में HAM की मजबूत पकड़ है। यहीं से जीतन राम मांझी ने 2024 का लोकसभा चुनाव जीता। विधानसभा सीटों में इमामगंज, बाराचट्टी, बोधगया, शेरघाटी, बेलागंज, और वजीरगंज में दलित वोटरों का दबदबा है।
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यहां मुसहर आबादी निर्णायक स्थिति में है। जहानाबाद में मखदुमपुर और औरंगाबाद में कुटुंबा सीट पर HAM ने 2020 में उम्मीदवार उतारे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। पूर्णिया की कसबा सीट पर भी दलित आबादी की मौजूदगी है, पर HAM को जीत नहीं मिलीं।
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में HAM ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटों पर जीत हासिल की। इन सीटों पर इमामगंज, बाराचट्टी, टेकारी जैसी सीटें शामिल हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में HAM को गया सीट मिली। यहां से जीतन राम मांझी जीते। अब जीतन राम मांझी ने अपने इसी वोट बैंक के भरोसे 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए 40 सीटों की मांग की है।

कैसे बिहार की सियासत में छाए जीतन राम मांझी
जीतन राम मांझी की कर्मस्थली गया रही है। वह गया के खिजरसराय के महकार गांव से आते हैं। महादलित समुदायों में से एक मुसहर जाति से आने वाले जीतन राम मांझी का जन्म 6 अक्तूबर 1944 को हुआ था। जीतन राम मांझी बचपन में पढ़ाई में ठीक थे। उन्होंने साल 1966 में गया कॉलेज से स्नातक किया, फिर डाक विभाग में क्लर्क की नौकरी मिली।
जीतन राम मांझी का मन नौकरी में नहीं रमा। साल 1980 में राजनीति में कदम रखने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उनकी सियासी यात्रा 1980 में शुरू हुई। वह कांग्रेस के टिकट पर गया के फतेहपुर विधानसभा सीट से विधायक बने। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई पार्टियों का हाथ थामा। उनका राजनीतिक करियर 43 साल का रहा है।
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किस-किस पार्टी में शामिल रहे हैं जीतन राम मांझी?
- कांग्रेस: साल 1980-1990 के बीच फतेहपुर से विधायक बने और चंद्रशेखर सिंह की सरकार में मंत्री रहे।
- जनता दल: साल 1990-1996 के बीच वह जनता दल से विधायक और मंत्री रहे।
- राष्ट्रीय जनता दल: साल 1996-2005 तक लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकारों में मंत्री रहे।
- जनता दल (यूनाइटेड): साल 2005-2015 तक नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री रहे। साल 2014 में मुख्यमंत्री बने। 2015 में JDU से निष्कासन के बाद उन्होंने अपनी पार्टी बनाई।
- हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा: साल 2015 में उन्होंने HAM की स्थापना की और बाद में NDA में शामिल हो गए।
कैसे पड़ी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा की नींव?
2015 में JDU से निष्कासित होने के बाद, जीतन राम मांझी ने मई 2015 में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) की स्थापना की। इसका उद्देश्य महादलित और वंचित वर्गों के हितों की रक्षा करना था। उनके बेटे संतोष कुमार सुमन वर्तमान में HAM के अध्यक्ष हैं, जबकि मांझी संरक्षक हैं। पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में NDA के साथ मिलकर 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन जीत सिर्फ 1 सीट पर मिली थी। 2020 में इस पार्टी ने 4 सीटें जीतीं। अब जीतन राम मांझी चाहते हैं कि उन्हें 40 सीटें मिले।
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