अनबन, मंथन और बिहार, PM मोदी के नागपुर दौरे से क्या-क्या सधा?
राजनीति
• NAGPUR 31 Mar 2025, (अपडेटेड 31 Mar 2025, 7:30 AM IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभाली थी, 11 साल में पहली बार वह संघ के मुख्यालय में गए। संघ संचालक मोहन भागवत से उनके मिलने के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। पढ़ें रिपोर्ट।

संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (Photo Credit: PTI)
साल 2024 का लोकसभा चुनाव। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी अब सक्षम हो गई है, वह अपने मामलों को स्वतंत्र रूप से संभाल सकती है। पार्टी अब उस दौर से आगे बढ़ चुकी है जब उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की जरूरत थी। कुछ दिन बाद लोकसभा चुनाव हुए और नतीजे बीजेपी के लिए स्वतंत्र रूप से ठीक नहीं रहे। बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई। दो बार से प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने वाली बीजेपी, अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रही, सहयोगियों की मदद लेनी पड़ी।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक पूर्व प्रांत प्रचारक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि बीजेपी से भारी भूल हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह तो संघ के पदाधिकारियों का आदर करते हैं लेकिन जेपी नड्डा, चूक गए। संघ के लाखों सेवकों को बीजेपी अध्यक्ष की यह बात नागवार गुजरी थी, जिसका असर चुनावों में साफ नजर आया। जिस उत्तर प्रदेश में बीजेपी और संघ 2014 से बेहद मजबूत स्थिति में थे, वहीं सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा। 80 लोकसभा सीटों वाले इस सूबे में समाजवादी पार्टी अप्रत्याशित रूप से 43 सीटें जीत गई, वहीं बीजेपी सिर्फ 33 सीट हासिल कर सकी।
पूर्व प्रांत प्रचारक ने कहा, 'साल 2019 में सिर्फ 1 सीट जीतने वाली कांग्रेस के हिस्से में 6 सीटें आ गईं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन के पास संयुक्त रूप से 43 सीटें हो गईं। यह बीजेपी के लिए सबक था कि संघ अगर नाराज हो गया तो नतीजे ठीक नहीं होंगे। बड़े नेताओं को भी यह समझना चाहिए कि अनुशासन अनिवार्य है, संघ अनुशासन से चलता है, अहंकार से नहीं।' जब उनसे सवाल किया गया कि पीएम मोदी आखिर संघ मुख्यालय गए क्यों तो उन्होंने जवाब दिया, 'संदेश देने की कोशिश है कि संघ से बीजेपी हमेशा मार्गदर्शन लेती रहेगी। बिहार में भी चुनाव होने वाले हैं। यूपी वाली गलती, बीजेपी बिहार में नहीं दोहराना चाहती है।'
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पीएम मोदी के नागपुर दौरे की चर्चा क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को नागपुर में संघ मुख्यालय केशव पुरम पहुंचे और संगठन की तारीफ में कसीदे पढ़े। उनकी इस यात्रा को राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी और संघ के नर्म पड़े रिश्तों को दोबारा जिंदा करने की कोशिश के तौर पर देखा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ भारत की अमर संस्कृति का विशाल वटवृक्ष करार दिया। वह अपने भाषण में स्वयंसेवकों की तारीफ करते नजर आए। उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं को राष्ट्रसेवा में समर्पित बताया।

पीएम मोदी हेडगेवार स्मृति मंदिर का दौरा किया, जो संघ के पहले दो सरसंघचालकों, केशव बलिराम हेडगेवार और एमएस गोलवलकर को समर्पित है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब यह संदेश जा रहा है कि बीजेपी और संघ एक हैं, चुनावों में भी संघ का मार्गदर्शन बीजेपी को मिलता रहेगा। संघ कार्यकर्ता अपने मिशन पर बिहार चुनावों के मद्देनजर जुट जाएंगे।
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संघ के एक पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सरकार और संघ के बीच एक बारीक रेखा हमेशा से रही है। संघ, सरकार के पास नहीं जाता, सरकार को निर्देश जारी किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 में संघ के साथ बीजेपी के तनाव को भांप लिया था। वह सही मौके की तलाश कर रहे थे, जब ठंडे पड़े रिश्तों को दोबारा ताजा किया जाए। बीते 9 महीने, संगठन के लिए बेहद उठा-पटक वाले रहे हैं। अलग बात है कि अनबन के बाद भी दिल्ली की विजय का श्रेय, संघ को भी मिल रहा है। संघ ने प्रांत में कई गुप्त बैठकें कीं थीं।
मुलाकात से क्या संदेश दे रही बीजेपी?
संघ के एक अन्य पदाधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि जेपी नड्डा का बयान अतीत हो चुका है। उनके बयान के बाद यूपी के गोरखपुर में भी कई दौर की बैठकें हुईं। योगी आदित्यनाथ ने अपने सूबे में संघ का ख्याल रखा। चुनावी हार ने यह एहसास करा दिया था कि अनुषांगिक संगठनों को अपने मातृ संगठनो का आदर करना चाहिए, नहीं तो परिणाम बाहर नजर आते हैं।
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क्या सच में बीजेपी से नाराज हो गया था संघ?
संघ के एक पदाधिकारी ने कहा, 'संघ अपने अनुषांगिक संगठनों से नाराज नहीं हो सकता। वक्ती तल्खी नजर आ सकती है। अगर संघ नाराज होता तो हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनाव में बीजेपी के लिए जीत की राह कैसे तैयार हो गई होती।'

पीएम मोदी ने क्या संकेत देने की कोशिश की है?
संघ के एक पूर्व पदाधिकारी ने कहा, 'सर संघ संचालक मोहन भागवत को व्यक्तिवादी राजनीति पर आपत्ति थी। एक नेता के इर्दगिर्द पूरा संघठन नहीं घूम सकता। यह किसी भी दल के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। भाजपा नरेंद्र मोदी पर निर्भर हो गई थी। संघ नेता तैयार करने में भरोसा रखता है। अगली पीढ़ी के नेताओं को आगे आने की जरूरत है। नरेंद्र मोदी खुद स्वंयसेवक रह चुके हैं। संगठन में उनकी बड़ी भूमिका रही है। ऐसे में उन्हें भी अनुशासन की मर्यादा पता है। उन्होंने मतभेद और मनभेद मिटाने के लिए यह कदम उठाया है।'
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पीएम मोदी ने यह तारीख ही क्यों चुनी?
संघ के एक पदाधिकारी ने कहा संघ के शताब्दी समारोह और बीजेपी की बेंगलुरु कार्यकारिणी से पहले यह बैठक हुई है। नए अध्यक्ष को लेकर संघ ने अपना सुझाव दिया होगा। संघ के स्वयं सेवकों को भी संदेश मिल गया है कि उन्हें एक बार फिर अपने उद्देश्य में लगना है। संघ के कार्यकर्ता सेवा और समर्पण जानते हैं।
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