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जिनके पास सिर्फ आधार, वे कहां से लाएं कागज, बिहार में वोटर परेशान

बिहार में लोगों से वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने के लिए जो दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, उन्हें लेकर लोग परेशान हो गए हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह दबे पांव NRC लागू करने की साजिश है।

Bihar Politics

बिहार में चुनाव आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन शुरू किया है। (Photo Credit: CEOBihar)

बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIRI) पर से विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ आम लोग भी परेशान हो गए हैं। बिहार में चुनाव आयोग वोटर लिस्ट अपडेट कर रहा है, जिसके लिए 'एन्यूमरेशन फॉर्म' अनिवार्य किया है। बिहार के लोगों से जो चीजें मांगी गई हैं, उन्हें जुटाने में अधिकारियों तक के पसीने छूट रहे हैं, आम लोग परेशान नजर आ रहे हैं। ग्रामीण तबकों के लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं। लोगों से जन्मतिथि, जन्म स्थान तक कागज दिखाकर साबित करना है, जिस पर लोग हैरान हैं।  

इन्युमेरेशन फॉर्म के लिए लोगों से कुछ सवाल किए जा रहे हैं। पिता-माता का नाम, जन्म तिथि, विधानसभा क्षेत्र, ब्लॉक से जुड़ी जानकारियां। चुनाव आयोग ने इसके लिए 11 दस्तावेज मांगे हैं। इन दस्तावेजों को लेकर ही सबने आपत्ति जताई है। लोगों का कहना है कि इतनी जानकारी वे कहां से लेकर आएं।

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माजरा क्या है?

1 जनवरी 2003 तक, स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन में जिन लोगों का नाम है, उन्हें एन्यूमेरेशन फॉर्म में जन्मतिथि और जन्मस्थान साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं देने होंगे। बिहार के 7.89 करोड़ वोटर वोटरों में 60 फीसदी लोग लिस्टेड हैं, वहीं 40 फीसदी ऐसी आबादी है कि जिसे फॉर्म के साथ कोई ऐसा दस्तावेज देना होगा जिससे जन्मतिथि और जन्म स्थान साबित हो जाए। 

क्या कह रहे हैं लोग?

पप्पू यादव, सांसद:-
चुनाव आयोग RSS का दफ्तर है, उसको रोकना चाहिए। यह संविधान के लिए खतरा बन रहा है। चुनाव आयोग भगवान हैं क्या, आरपार की लड़ाई होगी। बिहार की अस्मिता के लिए जान भी देना पड़ेगा तो देंगे। बिहार में दलितों पर अत्याचार नहीं होने देंगे।



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बिहार की एक महिला का वीडियो भी वायरल हो रहा है। महिला कहती नजर आ रही है, 'जितना कागज सरकार ने मांगा है, जमा करने के लिए, हम गरीब लोग हैं, मजदूरी करते हैं जीन के लिए। हम कहां से 5 हजार रुपये देकर कागज बनवाएंगे, जो वे लोग मांग रहे हैं। हमसे घूस मांगा जा रहा है, हम नहीं दे पाएंगे।'


नेहा सिंह राठौर, लोक गायिका:- 
बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन के नाम पर खुलकर सोशल इंजीनियरिंग खेली जा रही है जिसका मकसद बिहार चुनाव में पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित, मुसलमान और भूमिहीन आबादी को वोटिंग लिस्ट से बाहर करना है। ये एक सुनियोजित षडयंत्र है जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ चुनाव आयोग की भी मिलीभगत है।

समाजवादी पार्टी ने आधिकारिक तौर पर कहा है, 'बिहार में यह एक अलोकतांत्रिक और तुगलकी फरमान जारी कर राज्य के लोगों को वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की कोशिश की जा रही है। समाजवादी पार्टी इसका विरोध करती है।'


राजेश कुमार, कांग्रेस अध्यक्ष, बिहार:-
चुनाव आयोग से मुलाकात के दौरान मुझे ऐसा बार-बार महसूस हो रहा था कि यह लड़ाई सिर्फ बिहार की नहीं रह गई है, क्योंकि हमारे डेलिगेशन की चर्चा में यह बात साफ़ दिख रही थी। चर्चा के दौरान चुनाव आयोग का एग्रेशन देखकर समझकर आ रहा था कि 'मानो उन्होंने ठान लिया है कि बिहार के 20% वोटरों से उनका अधिकार छीन लेना है। 



सवाल जो विपक्ष उठा रहा है 

  • पहला सवाल: पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मात्र एक महीने में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन का निर्णय लेने वाले लोग कौन थे? 
  • दूसरा सवाल: चुनाव आयोग की अधिसूचना के बाद मात्र 19 दिन में ये काम कैसे हो पाएगा? हमें इस कदम से साफ-साफ नजर आ रहा है कि बिहार के वोटरों के साथ ये अन्याय है।


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कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार आलोक ने कहा, 'वाह चुनाव आयोग। आपके आका ने नोटबंदी की, अब आप वोटबंदी की राह पर हैं। विशेष मतादाता गहन पुनरीक्षण मताधिकार का उल्लंघन है। बिहार के करोड़ों मतादाता अपना मताधिकार खो सकते हैं। चुनाव आयोग ने चुनाव से ठीक पहले बिहार में अचानक इस नए असंवैधानिक नियम की घोषणा क्यों की है। जो दस्तावेज मांगे गए हैं, शायद ही किसी के पास हों। बीजेपी को हार से बचाने के लिए चुनाव आयोग पैंतरेबाजी कर रहा है।'

मनोज झा, सांसद:- 
गरीब, दलित-पिछड़े मुसलमानों को बाहर निकालने की साजिश है। 20 प्रतिशत आबादी पलायन कर चुके हैं। प्रावासी मजदूरों को बाहर करने की कोशिश की जा रही है। मौसम संबंधी शिकायतें हैं, जिससे निपटना है, उसी बीच 1 महीने के भीतर पूरा काम कैसे होगा। चुनाव आयोग की सुनने की प्रवृत्ति खत्म गई है।


इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में भी ऐसे ही दावे किए गए हैं। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कई मजदूर ऐसे हैं, जिनके पास कुछ दस्तावेज हैं लेकिन उनका नाम 2003 के इलेक्टोरल रोल में नहीं है। उन्हें 11 दस्तावेज देने होंगे। जिन मजदूरों के पास मनरेगा, वोटर कार्ड, आधार कार्ड भी है उनका नाम भी दर्ज नहीं किया जा रहा है। बूथ स्तर के अधिकारी ने उनसे कहा है कि अगर निवास और जाति प्रमाण पत्र 25 जुलाई से पहले बन जाएं, तभी वोटर लिस्ट में नाम दर्ज होगा। 

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ऐसा नहीं है कि यह बिहार के सीमांत इलाकों वाले गांवों की स्थिति है। नीतश कुमार के गढ़ कहे जाने वाले नालांदा जिले में भी ऐसे ही लोगों की कहानियां सामने आ रही हैं। लालू यादव के राघोपुर गांव में भी यही देखा जा रहा है। अधिकारियों तक को इसकी वजह से परेशानी हो रही है।

अगर नहीं भरा फॉर्म तो वोट नहीं दे पाएंगे 

अगर आपने फॉर्म नहीं भरा है तो वोट नहीं दे सकेंगे। 
 

क्या कागज मांगे गए हैं?

11 दस्तावेज चुना आयोग ने मांगे हैं। केंद्रीय राज्य, पीएसयू के नियमित कर्मचारी या पेंशन भोगी पहचान पत्र, सरकार की ओऱ से जारी 1 जुलाई 1987 से पहले जारी किया गया पहचान पत्र, बर्थ सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, मान्यता प्राप्त बोर्ड, विश्वविद्यालयों से मैट्रिक का सर्टिफिकेट, स्थाई निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, परिवार रजिस्टर, भूमि/मकान आवंटन पत्र। 

 

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