हर बार खेल बिगाड़ने वाली AIMIM गठबंधन में आई तो कितना फायदा हो सकता है
राज्य
• PATNA 04 Jul 2025, (अपडेटेड 04 Jul 2025, 9:44 AM IST)
AIMIM अल्पसंख्यक राजनीति करती है। बिहार में साल 2020 के विधानसभा चुनाव में यह पार्टी अप्रत्याशित तौर पर प्रदर्शन कर चुकी है। अकेले, अपने दम पर AIMIM ने 5 सीटें हासिल की थीं।

तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी और राहुल गांधी। (Photo Credit: Social Media)
साल 2020 के विधानसभा चुनावों में करिश्मा दिखाने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) अब महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है। एक तरफ पार्टी के आलाकमान, 'इंडिया गठबंधन' को जमकर घेरते हैं, दूसरी तरफ बिहार की तगड़ी सियासी लड़ाई के मद्देनजर, वह महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहते हैं। बिहार के AIMIM चीफ और विधायक अख्तरुल ईमान ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू यादव को चिट्ठी लिखी है और मांग की है कि उन्हें महागठबंधन में शामिल कर लिया जाए।
अख्तरुल ईमान ने कहा, 'यह बात आप जानते हैं कि 2015 से बिहार की राजनीति में AIMIM सक्रिय है। पार्टी की पहले ही दिन से कोशिश रही है कि चुनाव के वक्त सेक्युलर वोटों का बिखराव न हो। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सेक्युलर वोटरों के बिखराव की वजह से ही सांप्रदायिक शक्तियां सत्तासीन हैं। इसी मकसद से हमने पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के वक्त महागठबंधन में शामिल होने मंशा जाहिर की थी लेकिन हमारी कोशिश सफल नहीं हो सकी।'
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अख्तरुल ईमान, AIMIM अध्यक्ष, बिहार:-
साल 2025 का विधानसभा चुनाव हमारे सामने है। हमारी चाहत है कि AIMIM पार्टी को महागठबंधन में शामिल किया जाए। मैंने RJD, कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं को मौखिक और टेलीफोनिक वार्ता करके सूचना दी है, जिसकी चर्चा मीडिया में है। अगर हम मिलकर अगला विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो भरोसा है कि सेक्युलर वोटों का बिखराव रुकेगा। अगली सरकार महागठबंधन की ही होगी।
क्यों महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है AIMIM?
भारतीय जनता पार्टी (BJP) का चुनावी नारा है बटेंगे तो कटेंगे। इशारा साफ है कि बीजेपी, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति पर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलो को घेर रही है। बीजेपी बिहार में जाती समीकरण के बिना, हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीति करना चाहती है। AIMIM का कहना है कि अगर बिहार में अलग-अलग सियासी सेक्युलर दल, एक-दूसरे के खिलाफ लड़ेंगे तो इससे घाटा होगा। ऐसे में एकजुट अल्पसंख्यक मोर्चे के लिए बिहार में एक महागठबंधन बनना चाहिए।
AIMIM Bihar president Akhtarul Iman writes to RJD chief Lalu Yadav to include AIMIM in the Mahagathbandhan (grand alliance) pic.twitter.com/n3qvMtJo1Y
— ANI (@ANI) July 3, 2025
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AIMIM का तर्क है कि अगर पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनती है तो धर्मनिरपेक्ष वोट बिखरने नहीं पाएंगे और अगली सरकार बनाने के लिए महागठबंधन के पास बिहार में पर्याप्त अवसर होंगे। असदुद्दीन ओवैसी अपने भाषण में 'जय भीम' का जिक्र जरूर करते हैं। वह बिहार की 10 प्रतिशत से ज्यादा दतिल आबादी को भी साधना चाहते हैं ।
AIMIM ने यह भी इशारा किया कि अगर लालू यादव की ओर से गठबंधन को लेकर फैसला जल्दी में नहीं लिया जाता है तो इसे, महागठबंधन की चूक के तौर पर देखा जाएगा। AIMIM का यह खोखला दावा नहीं है बल्कि साल 2020 के चुनाव इशारा करते हैं कि इस पार्टी को नजरअंदाज करना, महागठबंधन की सियासी भूल हो सकती है।
अख्तरुल ईमान, AIMIM चीफ, बिहार यूनिट:-
हमने आरजेडी, कांग्रेस और महागठबंधन के अन्य दलों से उनके साथ शामिल होने के लिए बात की है। एक प्रस्ताव भेजा गया है। हमने उन्हें जल्द ही निर्णय लेने के लिए कहा है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें यह नहीं कहना चाहिए कि वे चाहते हैं कि चुनाव के बाद हम उनके साथ रहें।
AIMIM के साथ आने से होगा क्या?
बिहार के सीमांचल का इलाके में अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक स्थिति हैं। किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जैसे जिले अल्पसंख्यक बाहुल हैं। किशनगंज में करीब 67 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। कटिहार में 38 प्रतिशत, अररिया में 32 प्रतिशत और पूर्णिया में 30 प्रतिशत। AIMIM की इन सीटों पर मजबूत पकड़ है। असदुद्दीन ओवैसी, अल्पसंख्यकों के प्रभावशाली नेता बन गए हैं। AIMIM भी अल्पसंख्यक राजनीति करती है और बिहार में निर्विवाद रूप से यह तथ्य है कि अल्पसंख्यक राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पर भरोसा करते हैं। तीनों पार्टियां, मुखर होकर हिंदू्त्ववादी राजनीति और संघ की विरोधी हैं। अब गठबंधन से जुड़ने पर आंकड़े क्या कहते हैं, इसे जानना दिलचस्प होगा।
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2015 का चुनाव, महागठबंधन और AIMIM का हश्र
साल 2015 में महागठबंधन की तस्वीर अलग थी। नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू भी महागठबंधन का हिस्सा थी। महागठबंधन को संयुक्त रूप से कुल 41.9 प्रतिशत वोट पड़े। राष्ट्रीय जनता दल को करीब 18.4 प्रतिशत वोट पड़े। पार्टी ने करीब 80 सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस 6.7 प्रतिशत वोट के साथ 27 सीटों पर कामयाब हुई। जेडीयू ने 16.8 प्रतिशत वोटों के साथ 71 सीटें जीतीं। महागठबंधन ने 243 सीटों में से 178 सीटें हासिल की।
AIMIM ने बिहार में कदम रखा था। 17 फीसदी मुस्लिम आबादी के बाद भी बिहार में AIMIM को 0.50 प्रतिशत वोट पड़े। 6 सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे, किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली। अगर AIMIM भी महागठबंधन का हिस्सा होती तो भी कुछ खास असर नहीं पड़ता। वोट शेयर संयुक्त रूप से 42.4 प्रतिशत तक पहुंच जाता। AIMIM पहले ही मुकाबले में हार गई थी।
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2020 का चुनाव, महागठबंधन और AIMIM का हश्र
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव तक नीतीश कुमार का राष्ट्रीय जनता दल और महागठबंधन से मोहभंग हो गया था। महागठबंधन के लिए यह बड़ा झटका था। महागठबंधन का वोट शेयर 41.9 प्रतिशत से घटकर करीब 32 प्रतिशत तक पहुंच गया। असदुद्दीन औवैसी ने कमाल किया था। उनकी पार्टी ने इस चुनाव में 20 सीटें हासिल की थीं, जबकि वह महागठबंधन का हिस्सा नहीं थे, स्वतंत्र तौर पर उन्होंने चुनाव लड़ा था।
कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 7 प्रतिशत तक पहुंच गया। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, 51 सीटों पर हार गई। वामपंथी दलों को करीब 5 प्रतिशत वोट पड़े। 12 सीटों पर जीत मिली। महागठबंधन ने 243 में से 110 सीटें हासिल कीं लेकिन जीत नीतीश कुमार को मिली। कहा गया कि जिन सीटों पर महागठबंधन का खेल बिगड़ा, एनडीए ने बाजी मारी, वहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने अच्छा प्रदर्शन किया। कुल 1.3 प्रतिशत वोट पड़े लेकिन पार्टी ने सिर्फ 20 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। संयुक्त रूप से महागठबंधन को 243 विधानसभा सीटों में से 110 सीटें हासिल हुई।
महागठबंधन के साथ आए ओवैसी तो फायदा क्यों?
बिहार में मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 17 प्रतिशत है। AIMIM की राजनीति अल्पसंख्यक राजनीति के इर्दगिर्द घूमती है। साल 2015 में जिस पार्ट के पास 0.50 प्रतिशत वोट बैंक था, साल 2020 तक उस पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 1.3 प्रतिशत तक पहुंच गया। सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी का जलवा है, उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर है। अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बैसी और बहादुरगंज विधानसभा सीटें, पहले RJD का गढ़ कही जाती थीं, ओवैसी ने इसी गढ़ में सेंध लगाई थी।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर AIMIM भी महागठबंधन के साथ आती है तो मुस्लिम वोटों का बिखराव रुक सकता है। दिलचस्प बात यह है कि सीटों पर RJD और AIMIM के साथ सहमति बन पाती है या नहीं। बिहार में अपने प्रदर्शन से गदगद असदुद्दीन ओवैसी, कम से कम 20 सीटें मांगेंगे, RJD न तो अपनी सीटें कम करेगी, न ही सहयोगियों की। पहले ही कई नेता मुखर होकर सीट शेयरिंग पॉलिसी बोल रहे हैं।
बिहार में कितनी सीटें मुस्लिम बाहुल हैं?
बिहार में करीब 47 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक स्थिति में है। इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत तक है। अगर इन सीटों पर महागठबंधन और AIMIM के बीच बात बनती है तो असर देखने को मिल सकता है।
NDA किस उम्मीद में है
सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग लिख रहा है कि अगर ओवैसी और महागठबंधन एक साथ होते हैं तो भी कुछ खास अंतर नहीं पड़ेगा। वजह हिंदू वोटरों का 'ध्रुवीकरण' हो जाएगा। महागठबंधन की राजनीतिक 'सेक्युलर' है तो एनडीए के नेता अब खुलकर कह रहे हैं कि वे 'बटेंगे तो कटेंगे' की तर्ज पर हिंदू एकीकरण की बात कर रहे हैं। अगर ओवैसी महागठबंधन के साथ जाते हैं तो यह हिंदू वोटरों को और एकजुट कर सकता है।
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AIMIM के महागठबंधन में आने की दूसरी वजह क्या है?
बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 5 सीटें हासिल कीं। असदुद्दीन ओवैसी का दुर्भाग्य यह रहा कि 4 विधायक आरजेडी में चले गए, सिर्फ पार्टी यूनिट के अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ही रुके। जोकीहाट विधायक शाहनवाज, बहादुरगंज विधायक अंजार नईमी, कोचाधामन विधायक इजहार असफी और बायसी विधायक सय्यद रुकनुद्दीन अहमद अब आरजेडी में शामिल हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने विधायकों के टूटने को चोरी बताया था, अब उसी पार्टी के साथ वह जाना चाह रहे हैं, जिसने उनके विधायक तोड़े थे।
बिहार की सियासत पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि असदुद्दीन ओवैसी के लिए बिहार में कोई बेहद वफादार चेहरा मिला नहीं है कि कोई उन्हीं की तरह पार्टी को मैनेज कर ले जाए। औवैसी की पार्टी में कोई दूसरा, बड़ा चेहरा नहीं है। अगर गठबंधन का हिस्सा बनते हैं तो उन्हें बिहार में एक मजबूत जनाधार मिलेगा। अल्पसंख्यक राजनीति बीजेपी करती नहीं है, वक्फ 'अध्याय' के बाद मुस्लिम भी नीतीश कुमार से नाराज हैं। ऐसे में उन्हें अपने जीते विधायकों के टूटने का डर भी नहीं होगा।
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क्यों ओवैसी पर लगता है गठबंधन का खेल खराब करने का आरोप?
असदुद्दीन ओवैसी अपने भाषणों में मुस्लिम केंद्रित राजनीति करते नजर आते हैं। वह वक्फ पर मुखर होकर बोलते हैं, धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की आवाज उठाते हैं। सेक्युलर राजनीति करने वाले दल आरोप लगाते हैं कि ओवैसी की अल्पसंख्यक अपील की वजह से उनके वोट कट जाते हैं। ओवैसी केवल मुस्लिम बाहुल सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारते हैं, जिसका घाटा विपक्षी दलों को होता है। जैसे वह बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बेहद सक्रिय हैं। उनकी मौजूदगी को टीएमसी, आरजेडी और कांग्रेस जैसे दल, खतरे के तौर पर देखते हैं। असदुद्दीन ओवैसी, छोटे राजनीतिक दलों के साथ गठजोड़ करते हैं और सियासी समीकरण ही बदल देते हैं। विपक्ष का एक बड़ा वर्ग मानता है कि AIMIM वोटकटवा पार्टी है, बीजेपी की टीम बी है, जिसका काम, सेक्युलर वोटों में सेंध लगाना है। असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM इन दावों से हमेशा इनकार करते रहे हैं।
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